मरकज़ी जमीअत अहले हदीस हिंद के आयोजन में
इक्कीसवां ऑल इंडिया हिफ़्ज़, तजवीद और तफ़सीर-ए-कुरआन करीम प्रतियोगिता सफलता के साथ संपन्न!
*नई दिल्ली, 7 अक्टूबर 2025*
अल्लाह तआला का यह सबसे बड़ा इनाम और करम है कि उसने हम सबको, ख़ास तौर पर आप ख़ुशनसीब आलिमों और हाफिजों को, अपनी सबसे बड़ी नेमत और सबसे बड़ी दौलत — कुरआन करीम — को पढ़ने, अपने दिलो-दिमाग़ में बसाने, उसे सँवारने, उसकी क़द्र करने, उसे समझने और उस पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने की तौफ़ीक़ बख़्शी।
इस सबसे बड़ी दौलत का तक़ाज़ा यह है कि हम उस पर उसी एहतिमाम (ध्यान) और उसी अज़मत (महानता) के साथ अमल करें, जिस अज़मत और ताक़त के साथ अल्लाह तआला ने उसे सात आसमानों से अपनी सबसे अज़ीम मख़लूक़ को अता किया। इसलिए हामिल-ए-कुरआन (कुरआन के धारक) का यह फ़र्ज़ है कि उनकी ज़रिए से, उनके मदरसों के ज़रिए से और उनके उलमा के ज़रिए से इंसानियत की तक़रीम (सम्मान) बरक़रार रहे।
आपका रिश्ता कुरआन करीम से है, इसी लिए हम यहाँ जमा हुए हैं। लेकिन इस रिश्ते की जो अज़मत, जो क़ुव्वत, जो शान और जो असली जमाल-ओ-कमाल था, उसे हमने पूरा नहीं किया — यह हमारी बदनसीबी है। इसलिए हमें उसकी अज़मतों को समझना और उसके असल हामिलों का किरदार अदा करना है ताकि पूरी इंसानियत को इसका फ़ायदा पहुँचे और “बनी आदम अजज़ाए यक दीगरअंद” (आदम की औलाद एक दूसरे के अंग हैं) का हक़ीक़ी मतलब पूरा हो सके।
इन विचारों का इज़हार मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिंद के अमीर *मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफ़ी* ने अपने सदारती ख़िताब में किया।
आप 5 अक्टूबर की रात मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिंद के तत्वावधान में आयोजित 21वीं ऑल इंडिया हिफ़्ज़, तजवीद और तफ़सीर-ए-कुरआन करीम प्रतियोगिता के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
*मदारिस (इस्लामी विद्यालयों)* के ज़िम्मेदारों को संबोधित करते हुए अमीर साहब ने कहा कि हमने मदारिस के असल किरदार को पेश नहीं किया। अगर हम उनके अस्ल मक़सद और रूह को थोड़ा भी क़ायम रख पाते, तो आज मदारिस को वो मुश्किलें नहीं झेलनी पड़तीं, जिनका सामना आज वक़ला और तुज्जार (वकील और व्यापारी) भी नहीं कर पा रहे हैं।
अगर हमारे अंदर थोड़ी भी रूहानियत बाक़ी होती, तो हम आगे बढ़कर कुरआन की ख़िदमत करते और आज ये हालात देखने को न मिलते। जब तक हमारे मु’अल्लिम (अध्यापक), हामिलीन (धारक) और अहल-ए-मदारिस इस कुरआन को उसकी अज़मतों के साथ नहीं अपनाएँगे, दुनिया में हमारी बीमारियों का कोई इलाज नहीं।
अगर उम्मत-ए-इस्लामिया को बुलंदी हासिल करनी है, तो वह सिर्फ़ कुरआन के ज़रिए ही मुमकिन है। हमारे असलाफ़ (पूर्वज) कुरआन के हक़ीक़ी हामिल थे और हम उन्हीं के वारिस हैं। इसलिए हमें उन्हें अपना उस्वा (आदर्श) बनाना है।
*नबी-ए-रहमत ﷺ* कुरआन की बरकत से रहमतुल्लिल आलमीन (सारी दुनियाओं के लिए रहमत) बने। अगर हम भी साहिब-ए-कुरआन बनकर उसके तक़ाज़ों को पूरा करने और इंसानियत के लिए लाभदायक बनने का इरादा कर लें, तो कोई वजह नहीं कि हमें भी बुलंद मक़ाम हासिल न हो।
हमें सिर्फ़ अपने लिए नहीं, न अपने ख़ानदान के लिए, न सिर्फ़ मुसलमानों के लिए, बल्कि *पूरी इंसानियत के भलाई चाहने वाले और उसके सेवक* बनना है। इंसानियत को अपनी ज़ात से फ़ायदा पहुँचाना ही हमारा शیوہ बनना चाहिए।
*मुक़ाबले में भाग लेने वाले छात्रों* से मुख़ातिब होते हुए अमीर साहब ने कहा:
आज आप जिस मुक़ाम पर हैं और आपकी जो इज़्ज़त-अफ़ज़ाई हो रही है, वह कुरआन की निसबत से है। आप में से जिसकी पोज़ीशन आई है, सिर्फ़ वही कामयाब नहीं है, बल्कि कामयाबी तो उसी वक़्त मिल गई थी जब आपने इस मुक़ाबले में हिस्सा लेने का फ़ैसला किया था।
इस माद्दी (भौतिक) दौर में जो माँ अपने बेटे को कुरआन हिफ़्ज़ करने भेजती है कि वह हाफ़िज़ बने, आलिम बने और उसकी तालीमात को फैलाने वाला बने — वह माँ वाक़ई बहुत ख़ुशनसीब है।
आप सब प्रतिभागी कामयाब हैं। मैं तमाम प्रतिभागियों, उनके वालिदैन (माता-पिता), उनके असातिज़ा (शिक्षकों), मदरसों के मुहसिनीन (सहयोगियों) और हकम (न्याय मंडल)को दिल की गहराइयों से मुबारकबाद देता हूँ और शुक्रिया अदा करता हूँ कि उनकी मेहनत और लगन से आपने यह मक़ाम हासिल किया है।
हम मरकज़ी जमीयत के तमाम ज़िम्मेदारान की तरफ़ से आप सब प्रतिभागियों और जज (जुरी) की शिरकत पर तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हैं और बारगाह-ए-रब्बुल-इज़्ज़त में दुआगो हैं कि वह हमें कुरआन करीम की तालीमात पर अमल करने और जैसा हक़ है वैसी उसकी ख़िदमत अंजाम देने की तौफ़ीक़ अता फरमाए।
आमीन।
*मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिंद* के *नाज़िम-ए-उमूमी मौलाना मोहम्मद हारून सनाबली* ने अपने उद्घाटन भाषण में प्रतियोगिता के प्रतिभागियों से संबोधित करते हुए कहा कि —
*“आपका रिश्ता कुरआन करीम से है, और जिसने भी अपना रिश्ता इस किताब से जोड़ लिया, अल्लाह तआला ने उसे मुक़र्रम (सम्मानित) और मुअज्ज़ज़ (प्रतिष्ठित) बना दिया।*
यह उसका ऐसा एजाज़ (चमत्कार) है जो सबके लिए साबितशुदा हक़ीक़त है। लेकिन अफ़सोस कि जो उम्मत इसकी वाहिद हामिल (धारक) थी, वह आज इसकी तालीमात को पीछे डालकर अपने मक़ाम से गिरती जा रही है और लगातार गिरावट की तरफ़ बढ़ रही है। हमें इसकी निस्बत को मज़बूत कर फिर से सरफ़राज़ (सम्मानित) होना है।”
उन्होंने कहा — “जो विद्यार्थी इनाम हासिल नहीं कर सके, उन्हें मायूस नहीं होना चाहिए, बल्कि नए जोश और उमंग के साथ मेहनत जारी रखनी चाहिए। मैं दिल की गहराइयों से अमीर-ए-मुहतरम को इस प्रोग्राम के आयोजन पर मुबारकबाद पेश करता हूँ।”
*क़ारी अलाउद्दीन क़ासिमी* (उस्ताद, दारुल उलूम देवबंद वक़्फ़ और प्रतियोगिता के जुरी सदस्य ने तजवीद और क़िराअत की बारीकियों तथा रमूज़-ए-औक़ाफ़ (ठहराव और विराम के नियमों) की अहमियत पर रोशनी डालते हुए छात्रों को जागरूक किया। उन्होंने कहा कि “यह प्रतियोगिता अपनी मिसाल आप है, क्योंकि इसमें मसलकी मतभेद से ऊपर उठकर सबके साथ समान व्यवहार किया जाता है। अल्लाह इस तंजीम (संस्था) को तरक़्क़ी दे और ज़िम्मेदारों को अज्र-ए-ख़ैर (अच्छा बदला) अता करे।”
*डॉ. क़ारी अतीकुल्लाह मदनी* (उस्ताद, जामिआतुल इमाम अल-अलबानी, बुरहान, पश्चिम बंगाल — प्रतिनिधि न्याय मंडल) ने मरकज़ी जमीयत की क़ियादत, ख़ास तौर पर अमीर-ए-मुहतरम को सफल आयोजन पर मुबारकबाद दी। उन्होंने कहा — “यह प्रतियोगिता जमीयत की सेवाओं की एक अहम कड़ी है। मैंने इसे हर पहलू से बेहतरीन पाया। कई दिन रहने के बावजूद किसी तरह की कोई कमी महसूस नहीं हुई — यही एहसास तमाम प्रतिभागियों, ख़ास तौर पर न्याय मंडल का भी है, जिनकी मैं तरजुमानी कर रहा हूँ।”
*हाफ़िज़ शकील अहमद मेरठी*, (साबिक़ अमीर, सुबाई जमीयत अहले हदीस दिल्ली) ने कहा —
“यह बैठक कुरआन की निस्बत से मुनअक़िद (आयोजित) की गई है, जो अल्लाह का कलाम है और इंसानियत के लिए सरचशमा-ए-हिदायत (मार्गदर्शन का स्रोत) और दस्तूर-ए-हयात (जीवन-संहिता) है। काश हम इस कुरआन की अमली तफ़सीर (व्यवहारिक व्याख्या) बन जाएँ।”
उन्होंने अमीर-ए-मुहतरम और अन्य ज़िम्मेदारान का शुक्रिया अदा किया।
*एडवोकेट फिरोज़ अहमद अंसारी*, (अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मशावरत) ने सद्र-ए-मजलिस और प्रतिभागियों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा —
“यह बहुत ही कामयाब प्रोग्राम है। इसके ज़रिए कुरआन करीम की ख़िदमत का मौक़ा मिलेगा। अमीर जमीयत मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफ़ी की क़ियादत में मरकज़ी जमीयत बहुमूल्य सेवाएँ अंजाम दे रही है।”
*डॉ. रज़ी-उल-सलाम नदवी*, (नुमाइंदा अमीर, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद, इंजीनियर सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी) ने कहा —
“इस तरह के प्रोग्रामों की बहुत अहमियत है — फ़रिश्ते इन बैठकों को अपनी परों से ढाँप लेते हैं। हर साल प्रतिभागियों की बढ़ती संख्या इसकी सफलता की दलील है। मैं मरकज़ी जमीयत की क़ियादत को इस आयोजन पर मुबारकबाद पेश करता हूँ।”
*मौलाना अब्दुस्सलाम सलफ़ी*, (अमीर, सुबाई जमीयत अहले हदीस मुंबई) ने कहा —
“मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिंद की तरफ़ से हिफ़्ज़ व तजवीद कुरआन करीम की इस अज़ीम प्रतियोगिता के आयोजन पर अमीर मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफ़ी और उनके तमाम रफ़ीक़ों को दिल की गहराइयों से मुबारकबाद पेश करता हूँ। यह जानकर बेहद खुशी हुई कि सौ से ज़्यादा संस्थानों के लगभग सात सौ छात्रों ने इसमें हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अहमियत बढ़ रही है और परीक्षकों के सकारात्मक विचार इस की सफलता का सबूत हैं।”
*प्रो. शहपर रसूल*, (पूर्व वाइस चेयरमैन, उर्दू अकादमी दिल्ली) ने अमीर-ए-मुहतरम और उनके सहयोगियों को आयोजन पर मुबारकबाद दी और कहा —
“छात्रों को इस तरह की प्रतियोगिताओं में ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा लेना चाहिए। इनसे हिम्मत और होसला बढ़ता है और सुप्त (सोई हुई) प्रतिभाएँ जागृत होती हैं। इस कार्यक्रम में सात सौ छात्रों की भागीदारी अपने आप में अर्थपूर्ण है।”
*डॉ. अब्दुल मजीद सलाह़ी*, (सेक्रेटरी, नदवतुल मुजाहिदीन, केराला ने कार्यक्रम के आयोजन पर खुशी जताई, प्रतिभागियों और ज़िम्मेदारान को मुबारकबाद दी और जमीयत की बहुमुखी सेवाओं की सराहना करते हुए छात्रों को नसीहत (सलाह और प्रेरणा) दी।
*मौलाना अता-उर-रहमान क़ासिमी*, (अध्यक्ष, शाह वलीउल्लाह इंस्टीट्यूट) ने कहा —
“कुरआन करीम तमाम इल्मों का जामे (समावेशक) है। इसमें क़ौमों और मिल्लतों की तारीख़ है, साइंस और दूसरे इल्म भी शामिल हैं, लेकिन इसका असल मक़सद वही है जो कुरआन ने बताया — हुदन लिल मुत्तक़ीन (परहेज़गारों के लिए मार्गदर्शन)। यह ज़ाहिर और बातिन, दोनों की इस्लाह चाहता है। मौलाना आज़ाद ने मुल्क के किसी हिस्से की तबाही पर इतना अफ़सोस नहीं किया जितना पानीपत की बर्बादी पर — क्योंकि वह हिफ़्ज़-ए-कुरआन का मरकज़ था। आज दिल्ली में मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफ़ी की ख़िदमत-ए-कुरआन का जज़्बा देखकर वह ग़म हल्का हो जाता है। मैं उन्हें दिल से मुबारकबाद देता हूँ।”
*डॉ. सैयद क़ासिम रसूल इलियास, (तरजुमान, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) ने इस प्रोग्राम में शिरकत को अपने लिए *बाइस-ए-सआदत (सौभाग्य) बताया और कहा —
“यह किताब हिदायत है। हमें चाहिए कि हम इसकी तालीमात को इंसानों तक पहुँचाएँ और खुद उस पर अमल करें। मैं जमीयत के ज़िम्मेदारान को इस सफल आयोजन पर मुबारकबाद पेश करता हूँ।”
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के *प्रोफेसर एमेरिटस और प्रसिद्ध बुद्धिजीवी अख़्तरुल वासा* ने मरकज़ी जमीयत की इस महफ़िल में शिरकत की दावत पर शुक्रिया अदा किया और इस मुसाबक़े (प्रतियोगिता) को मुसलमानों की कुरआन से मुहब्बत और लगाव की एक मज़बूत दलील बताया।
उन्होंने कहा — “हमें कुरआन को पढ़ने, समझने और उस पर अमल करने की कोशिश करनी चाहिए। यह मरकज़ी जमीयत का बड़ा फ़ख़्र (गौरव) है कि वह इस प्रतियोगिता में मसृकी मतभेद से परे सबको हिस्सा लेने की दावत देती है। इसके लिए यह जमीयत शुक्रिया और मुबारकबाद की हक़दार है।”
*मौलाना फ़ज़लुर रहीम मुझद्ददी*, (जनरल सेक्रेटरी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) ने मरकज़ी जमीयत के तमाम ज़िम्मेदारों को प्रोग्राम में शरीक होने का मौक़ा देने पर शुक्रिया अदा किया और कहा —
“वह इज्तिमा (सभा) सबसे अज़ीम है जिसकी निस्बत कुरआन से हो। जो कुरआन को सीखता और सिखाता है, वही सबसे बेहतर इंसान है। सबसे कामयाब व्यक्ति वह है जो यह इरादा कर ले कि वह कुरआन की तालीमात को अपनी ज़िंदगी में लागू करेगा।
यह किताब अदल व इंसाफ़, रुश्द व हिदायत, अमन व आश्ती (शांति) की तालीम से भरी हुई है। अल्लाह तआला ने इसे इंसानों की राहनुमाई के लिए नाज़िल किया है। यह सआदत (सुख) और नेकबख़्ती (सफलता) का सरचशमा है। जिन्होंने इसे जज़्दानों (कवर) में लपेटकर रख दिया है, वे दरअसल बहुत ही बदनसीब हैं।
कुरआन से ग़फ़लत (लापरवाही) मुसलमानों की ज़िल्लत और रुसवाई (अपमान) का सबसे बड़ा कारण है। मौजूदा हालात में इस तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन बेहद ज़रूरी है। मैं मरकज़ी जमीयत को इसके आयोजन पर मुबारकबाद पेश करता हूँ।”
*उस्तादुल असातिज़ा शैख़ अनीसुर्रहमान आज़मी*, (अमीर, सूबाई जमीयत अहले हदीस, तमिलनाडु) ने प्रतिभागी छात्रों को क़ीमती पंद-ओ-नसीहत (सलाह व प्रेरणा) दी और कहा —
“अमल का दारोमदार नीयतों पर है। इसलिए आप मेहनत करें — इसका अज्र (इनाम) आपको आख़िरत में ज़रूर मिलेगा। कुरआन को बार-बार दोहराते रहें, एक ही नुस्ख़े (कॉपी) का इस्तेमाल करें, इससे पुख़्तगी (मज़बूती) आएगी।
यह कुरआन का एजाज़ (चमत्कार) है कि आज दुनिया में इसके याद करने वाले करोड़ों हैं। मैं इस प्रतियोगिता के शानदार आयोजन पर मरकज़ी जमीयत के ज़िम्मेदारों, ख़ास तौर पर मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफ़ी को मुबारकबाद पेश करता हूँ।”
*मुसाबक़े के सिलसिले में तास्सुरात (विचार)* पेश करने वालों में —
जनाब *मुश्ताक़ वानी* (नाज़ीम सूबाई जमीयत अहले हदीस, कश्मीर),
मौलाना *फ़ज़लुर रहमान उमरी* (अमीर, सूबाई जमीयत अहले हदीस, आंध्र प्रदेश),
मौलाना *ताहा सईद ख़ालिदी* (नायब अमीर, सूबा उड़ीसा),
मौलाना *इस्माइल सरवाड़ी* (अमीर, सूबाई जमीयत अहले हदीस, राजस्थान),
मौलाना *शमीम अख़्तर नदवी* (अमीर, सूबाई जमीयत अहले हदीस, पश्चिम बंगाल),
मौलाना *अब्दुल अहद मदनी* (उस्ताद, जामिआ रियाज़ुल उलूम दिल्ली),
मौलाना *ख़ुरशीद आलम मदनी* (नायब अमीर, सूबाई जमीयत अहले हदीस, बिहार),
और मौलाना *शहाबुद्दीन मदनी* (नाज़िम, सूबाई जमीयत अहले हदीस, पुर्बी यूपी) शामिल थे।
इन सभी ने अपने विचारों में प्रतियोगिता की अहमियत व अफ़ादियत (महत्ता और उपयोगिता) पर रोशनी डाली और मरकज़ी जमीयत की क़ियादत (नेतृत्व) को मुबारकबाद दी।
*कार्यक्रम के समापन से पहले, छह श्रेणियों (कैटेगरीज) में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पाने वाले छात्रों को *नक़द इनाम, प्रशस्ति पत्र और यादगारी घड़ी से नवाज़ा गया।
इसी तरह सभी प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र, प्रोत्साहन पुरस्कार, कुरआन शरीफ़, घड़ी और “आईना-ए-जमाल-ए-मुस्तफ़ा” नामक पुस्तक — जो “बक़ामत कहतर, बक़ीमत बेहतर” (आकार में छोटी लेकिन मूल्यवान) के मिसाल थी — भेंट की गई।
इसके बाद *मरकज़ी जमीयत के ख़ाज़िन अल-हाज वकील परवेज़* ने सभी प्रतिभागियों, निर्णायकों, छात्रों, वक्ताओं, मेहमानों, अभिभावकों और शिक्षकों का शुक्रिया अदा किया।
रात *साढ़े दस बजे* यह रूहानी महफ़िल (आध्यात्मिक सभा) अपने हुस्न-ए-इख़्तिताम (शानदार समापन) पर पहुँची।
यह स्पष्ट रहे कि *समापन कार्यक्रम* पिछले *5 अक्तूबर* को नमाज़-ए-मग़रिब के बाद *जामे मस्जिद अहले हदीस कॉम्प्लेक्स, ओखला, नई दिल्ली* में आयोजित हुआ, जिसमें मरकज़ी जमीयत और सूबाई जमीयतों के ज़िम्मेदार, मरकज़ी मजलिस-ए-आमिला के सदस्य, प्रतियोगिता के प्रतिभागी, निर्णायकमंडल, विभिन्न तंजीमों के पदाधिकारी और शहर के प्रतिष्ठित लोगों की बड़ी संख्या ने शिरकत की।