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October 9, 2025
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“आज़ादी की नेमत की क़द्र करें” – मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफ़ी

अल-मअहद अल-आली लित्तख़स्सुस फ़ी अद-दिरासत अल-इस्लामिया, नई दिल्ली में यौमे-आज़ादी का आयोजन
दिल्ली: 16 अगस्त 2025

जश्न-ए-आज़ादी की मुबारकबाद तमाम देशवासियों को, चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में हों। यह आज़ादी हमें बड़ी क़ुर्बानियों के बाद हासिल हुई है। हम सबको इसकी क़द्र करनी चाहिए और जिस तरह हमारे बुज़ुर्गों ने “हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – आपस में सब भाई-भाई” का नारा लगाकर पूरी एकजुटता से आज़ादी हासिल की थी, उसी तरह हमें भी पूरे राष्ट्रीय और मिल्ली जज़्बे तथा भावना से सराबोर होकर वतन-ए-अज़ीज़ की तरक्क़ी और तामीर के लिए आगे बढ़ना चाहिए और मुल्क, मिल्लत तथा इंसानियत की सेवा का नया जहाँ आबाद करना चाहिए। इन विचारों का इज़हार मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिन्द के अमीर-ए-मुहतरम मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफ़ी ने किया।

आप 15 अगस्त 2025 को मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिन्द के उच्च शैक्षिक एवं शोध संस्थान “अल-मअहद अल-आली लित्तख़स्सुस फ़ी अद-दिरासत अल-इस्लामिया” (अहल-ए-हदीस कॉम्प्लेक्स, अबुल फ़ज़ल एन्क्लेव, जामिया नगर, नई दिल्ली) में आयोजित यौमे-आज़ादी समारोह में परचमकुशाई (ध्वजारोहण) के बाद ऑनलाइन ख़िताब कर रहे थे।

अमीर-ए-मुहतरम ने आगे कहा कि हर व्यक्ति को देश के प्रति ईमानदार, मेहनती और वफ़ादार होना चाहिए, आपसी भाईचारे की फ़िज़ा को कायम रखना चाहिए, वतन की तामीर के लिए दिन-रात एक कर देना चाहिए और अमन-ओ-शांति के फ़रोग़ में भरपूर योगदान देना चाहिए। वतन से मुहब्बत एक फ़ितरी जज़्बा है और ईमान का तक़ाज़ा भी।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस पर-मसर्रत मौके पर यह सच्चाई हमारे सामने रहनी चाहिए कि आज़ादी कैसे छिनती है और ग़ुलामी कैसे आती है। कहीं ऐसा न हो कि जश्न-ए-आज़ादी की ख़ुशियों में हम यह भूल जाएँ कि हमारे बुज़ुर्गों ने सुबह-ए-आज़ादी के लिए कैसी-कैसी क़ुर्बानियाँ दीं, किस तरह उन्होंने अपने घर-बार छोड़े, बच्चों को गँवाया और जेल की सलाखों के पीछे भेजे गए।

इस मौके पर तहरीक-ए-शहीदैन और उनके अज़ीम क़ायेदीन जैसे मौलाना शाह मोहम्मद इस्माइल शहीद, सैयद अहमद शहीद, मौलाना विलायत अली, मौलाना इनायत अली आदि के कारनामों को याद करना ज़रूरी है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा था कि अगर जद्द-ओ-जहद-ए-आज़ादी के हवाले से अहले सादिक़पुर (अहले हदीस) की सेवाओं और क़ुर्बानियों को एक पलड़े में रखा जाए और दूसरे पलड़े में पूरे देशवासियों की क़ुर्बानियों को रखा जाए तो अहले सादिक़पुर का पलड़ा भारी होगा।

नवाब सिद्दीक़ हसन ख़ान भोपाली, अस़ीर-ए-ज़िन्दान रावलपिंडी सरदार अहले हदीस सैयद नज़ीर हुसैन मोहद्दिस देहलवी, 1857 की जंग-ए-आज़ादी में जनरल बख़्त ख़ान और उनके रफ़ीक़ मुजाहिदीन, बाद में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान आदि समेत असंख्य देशवासियों ने भी आज़ादी के लिए अनगिनत क़ुर्बानियाँ दीं, फाँसी के फंदे चूमे, बेड़ियों में जकड़े गए, दरिया-ए-शोर पार किए और तरह-तरह की सज़ाएँ व तकलीफ़ें सही, तब जाकर हमें यह आज़ादी नसीब हुई।

मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिन्द के मीडिया कोऑर्डिनेटर डॉ. मोहम्मद शीश इदरीस तैम़ी ने कहा कि यौमे-आज़ादी दरअसल मुल्क और मिल्लत की सेवा तथा क़ुर्बानी के प्रति ताज़ा अहद करने का दिन है। उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ आज़ादी का बिगुल सबसे पहले मुसलमानों, ख़ासकर अहले हदीसों ने ईमानी और क़ौमी जज़्बे से बजाया था, इसलिए वे सबसे ज़्यादा अंग्रेजों के निशाने पर आए। क़ौम को उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए।

अल-मअहद अल-आली के उसताद मौलाना अब्दुल ग़नी मदनी ने कहा कि जद्द-ओ-जहद-ए-आज़ादी में मुसलमानों ने जो बेशकीमती सेवाएँ दी हैं, अफ़सोस कि उनका ज़िक्र अक्सर नहीं किया जाता। हमें चाहिए कि अपने बुज़ुर्गों की क़ुर्बानियों को याद रखें और उन्हें नई पीढ़ी तक पहुँचाएँ।

उभरते हुए नौजवान सर्जन डॉ. असअद असगर ने कहा कि यौमे-आज़ादी सिर्फ़ खुशियाँ मनाने का दिन नहीं है बल्कि यह दिन हमें अपने बुज़ुर्गों की क़ुर्बानियों को याद करने और मुल्क की तामीर व तरक्क़ी के लिए नई जागरूकता पैदा करने का है।

इस अवसर पर अल-मअहद के उसताद डॉ. अब्दुल वासेअ तैम़ी, सामाजिक रहनुमा डॉ. सैयद अब्दुर्रऊफ़ और मेडिकल सेवक मौलाना रबीउल्लाह सलफ़ी ने भी ख़िताब किया और कार्यक्रम की बधाई दी।

कार्यक्रम में परचमकुशाई के बाद “जन गण मन” और “सारे जहाँ से अच्छा” गाया गया और प्रतिभागियों में मिठाइयाँ बाँटी गईं। इसमें अल-मअहद के शिक्षकों, विद्यार्थियों और कर्मचारियों के अलावा मरकज़ी जमीयत अहले हदीस हिन्द के कार्यकर्ता, सम्बद्ध लोग और आसपास की महत्वपूर्ण हस्तियाँ जैसे अयाज़ तक़ी, शम्सुद्दीन आदि मौजूद थे।

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