जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि बुलडोजर अन्याय का प्रतीक बन चुका है
नई दिल्ली, 1 अक्टूबर 2024। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जमीअत उलमा-ए-हिंद की याचिका बनाम उत्तरी दिल्ली नगर निगम रिट पेटीशन (सिविल) संख्या 295/2022 (और संबंधित मामलों) पर सुनवाई करते हुए एक बार फिर कहा कि सजा के तौर पर किसी भी व्यक्ति के घर को गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस अवसर पर वकीलों ने गुजरात और असम में हुई बुलडोजर की कार्रवाई पर भी ध्यान आकर्षित कराया तो माननीय न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत घटनाओं को भी देखेंगे, पहले हमें पैन-इंडिया गाइडलाइन पर काम करने दें।
इस अवसर पर याचिकाकर्ता जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि बुलडोजर इस देश में अन्याय का प्रतीक बन गया है। उन्होंने कहा कि यह आम धारणा बन गई है कि साम्प्रदायिक शक्तियां मुसलमानों को मस्जिदों और इबादतगाहों को चिन्हित करती हैं और स्थानीय अधिकारी उसे तत्काल गिरा देते हैं। इस संबंध में कुछ घटनाएं हुई हैं जो अत्यंत दुखद हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से स्पष्ट गाइडलाइन की आशा की जा रही है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन पर आधारित पीठ ने आज जमीअत उलमा-ए-हिंद के वरिष्ठ वकील एम आर शमशाद, एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्डर फर्रुख रशीद और अन्य द्वारा प्रस्तुत गाइडलाइन पर पक्षकारों की राय पर विचार किया। ज्ञात हो कि जमीअत उलमा-ए-हिंद ने गाइडलाइन को लेकर अपनी सलाह में कहा है कि विध्वंस से 60 दिन पूर्व नोटिस दिया जाए जो स्थानीय भाषा में हो और उसमें कारण भी बताया गया हो। इसके साथ ही पीड़ित व्यक्ति को 15 दिनों के अंदर अपील करने का अधिकार होगा और फैसले तक विध्वंस की कार्रवाई न की जाए। अन्यथा, अधिकारियों को दंड और पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए। कोर्ट ने पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अगले फैसले तक बुलडोजर कार्रवाई पर रोक बरकरार रखी और कहा कि हम जल्द ही अंतिम दिशानिर्देश जारी करेंगे, जो समान रूप से लागू होंगी। जस्टिस गवई ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, यहां किसी एक धर्म को निशाना नहीं बनाया जा सकता।
पीठ ने दोहराया कि किसी आपराधिक मामले में मात्र आरोप लगाया जाना या किसी मामले में सजा भी किसी के घर को गिराने का आधार नहीं बन सकती। सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए, इस बात पर सहमत थे कि आपराधिक मामले में कथित संलिप्तता किसी के भवन को ध्वस्त करने का आधार नहीं बन सकती। हालांकि, एसजी ने 17 सितंबर को न्यायालय द्वारा विध्वंस पर प्रतिबंध के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह वास्तविक अतिक्रमणों को हटाने में बाधा बन रही है।
सुनवाई के दौरान, अदालत ने स्थानीय अधिकारियों द्वारा विध्वंस पर ‘न्यायिक निगरानी’ की आवश्यकता पर बल दिया। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि विध्वंस का नोटिस एक पंजीकृत डाक द्वारा मूल मालिक को कर्तव्य पालन की स्वीकृति के साथ भेजा जाना चाहिए। इसने यह भी सुझाव दिया कि अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए नोटिस और आदेश को डिजिटाइज कर ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड किया जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि विध्वंस के अंतिम आदेश और उसके कार्यान्वयन के बीच समय की एक सीमा होनी चाहिए होनी चाहिए ताकि प्रभावित लोग वैकल्पिक व्यवस्था चुन सकें।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने जवाब में कहा कि भले ही इसकी अनुमति न हो…सड़क पर महिलाओं और बच्चों को देखना कोई सुखद दृश्य नहीं है। बुजुर्ग सड़कों पर उतर रहे हैं।
वरिष्ठ वकील एमआर शमशाद ने सुझाव दिया कि विध्वंस से पहले नोटिस की अवधि को और बढ़ाया जाए। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को एक रिपोर्ट तैयार करना चाहिए जो इस बात की पुष्टि करे कि नियमों का अनुपालन किया गया है ताकि जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने यह भी इंगित किया कि केवल चुनिंदा घरों को निशाना बनाना ठीक नहीं है। यह नहीं हो सकता कि केवल एक मुहल्ले का एक ही घर अवैध हो, अतः विध्वंस से पूर्व पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण किया जाए और समान रूप से कार्रवाई की जाए।
वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े दिल्ली के जहांगीरपुरी में गणेश गुप्ता नाम के एक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जिनकी जूस की दुकान 2022 में हनुमान जयंती पर हुई हिंसा के बाद नगर निगम के विध्वंस अभियान में ध्वस्त कर दी गई थी। हेगड़े ने कहा कि इस विध्वंस को राजनेताओं ने पहले से मीडिया में प्रचारित किया और इसे “मीडिया तमाशा” बनाया गया। उन्होंने बताया कि उनके मुवक्किल को कोई नोटिस नहीं मिला था, और जो नोटिस अधिकारियों ने भेजा था, वह किसी शकुंतला नाम के व्यक्ति के नाम पर था, जो उनके मुवक्किल से अनजान है। पीठ ने कहा कि वह यह स्पष्ट करेगी कि नोटिस पंजीकृत मालिक को भेजा जाना चाहिए।
अदालत ने संयुक्त राष्ट्र के आवास अधिकारों के विशेषज्ञ और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और कहा कि उसने सीधे प्रभावित पक्षों की बात सुन ली है। अदालत ने संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ की वकील वृंदा ग्रोवर से कहा कि वह अपनी व्यक्तिगत क्षमता में प्रस्ताव दे सकती हैं।
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट में 2022 में दायर याचिकाओं का संबंध दिल्ली के जहांगीरपुरी में अप्रैल 2022 में होने वाले विध्वंस अभियान से था, जिसे बाद में रोक दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि अधिकारी सजा के तौर पर बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं कर सकते। सितंबर 2023 में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल देव ने सरकार के रवैये पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत घर के अधिकार का बचाव किया और ध्वस्त किए गए घरों के पुनर्निर्माण की मांग की थी। मध्य प्रदेश और राजस्थान में विध्वंस की कार्रवाइयों के विरूद्ध आपातकालीन राहत याचिकाएं जमीअत उलमा-ए-हिंद द्वारा दायर की गईं, इसके बाद यह सुनवाई हो रही है।
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