महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के लिए 20 नवंबर को मतदान होना है। राज्य में भाजपा समर्थित सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति और कांग्रेस समर्थित महाविकास अघाड़ी के बीच मुकाबला है। लेकिन दोनों ही गठबंधनों में सीटों को लेकर लेकर खींचतान जारी है। महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोरों पर है। दोनों पक्षों की ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इसके साथ ही आपसी खींचतान भी जारी है। खासतौर पर महाराष्ट्र में गठबंधन के दलों में खींचतान ज्यादा दिखाई दे रही है। इस हफ्ते ‘खबरों के खिलाड़ी’ में इसी विषय पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, समीर चौगांवकर, अवधेश कुमार और अनुराग वर्मा मौजूद रहे। रामकृपाल सिंह: जो कुछ भी मीडिया में आ रहा है। हरियाणा के बाद अमेरिका में जो कुछ हुआ है। उसके बाद कुछ भी कहना कि महाराष्ट्र में क्या होगा क्या नहीं होगा जल्दबाजी होगी। मुझे ऐसा लगता है कि कुछ पुर्जे अदल-बदल गए हैं। जो फिट नहीं हो पा रहे हैं। जो भी नतीजा आएगा उसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति महाराष्ट्र ही नहीं देश की राजनीति को भी प्रभावित करेगी।
विनोद अग्निहोत्री: सीट शेयरिंग का मसला जरूर सुलझ गया है लेकिन सीट गेटिंग का मुद्दा अभी भी बना हुआ है। दोनों तरफ आंतरिक खींचतान चलेगी ही। योगी आदित्यनाथ के बयान की प्रतिक्रिया तो बिहार तक हो रही है। एनडीए जो घटक दल सेक्युलर राजनीति करते रहे हैं वो इससे असहज हो रहे हैं। महायुति और अघाड़ी में एक बड़ा फर्क यह है महायुति में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और केंद्र में भी उसकी सरकार है। ऐसे में अगर वो जीतते हैं तो भाजपा की चलना लगभग तय है। वहीं, अघाड़ी में तीनों लगभग बराबरी की स्थिति में हैं ऐसे में इनके जीतने की स्थिति में रस्साकशी ज्यादा दिखाई देगी।
अवधेश कुमार: संविधान के नाम पर कोरा कागज जहां बांटा जा रहा हो वहां स्थिति क्या होगी यह समझा जा सकता है। महाराष्ट्र की राजनीति इस वक्त संक्रमण काल के दौर में हैं। अभी जिस तरह की स्थिति है ये महाराष्ट्र की वास्तविक राजनीति नहीं है। नतीजे कुछ भी आएं उसके बाद भी उठापटक से इनकार नहीं किया जा सकता है। अजित पवार अभी बड़े खिलाड़ी नहीं हैं। नवाब मलिक के मामले पर उन्होंने जो स्टैंड लिया है वह भाजपा और शिवसेना के खुलेआम विरोध है।